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प्र प॒स्त्या॒३॒॑मदि॑तिं॒ सिन्धु॑म॒र्कैः स्व॒स्तिमी॑ळे स॒ख्याय॑ दे॒वीम्। उ॒भे यथा॑ नो॒ अह॑नी नि॒पात॑ उ॒षासा॒नक्ता॑ करता॒मद॑ब्धे ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra pastyām aditiṁ sindhum arkaiḥ svastim īḻe sakhyāya devīm | ubhe yathā no ahanī nipāta uṣāsānaktā karatām adabdhe ||

पद पाठ

प्र। प॒स्त्या॑म्। अदि॑तिम्। सिन्धु॑म्। अ॒र्कैः। स्व॒स्तिम्। ई॒ळे॒। स॒ख्याय॑। दे॒वीम्। उ॒भे इति॑। यथा॑। नः॒। अह॑नी इति॑। नि॒ऽपातः॑। उ॒षसा॒नक्ता॑। क॒र॒ता॒म्। अद॑ब्धे॒ इति॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:55» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के विषय में गृहस्थ के कर्म को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यथा) जैसे (उभे) दोनों (अहनी) रात्रि और दिन (उषासानक्ता) रात्रि और दिन को (अदब्धे) नहीं हिंसित (करताम्) करें, वैसे (नः) हम लोगों का अर्थात् अपना (निपातः) अतिशय पालन करनेवाला मैं (अर्कैः) मन्त्रों से (अदितिम्) खण्डरहित (पस्त्याम्) गृह और (सिन्धुम्) नदी की (स्वस्तिम्) सुख की और (सख्याय) मित्रपने के लिये (देवीम्) सुन्दर विद्यायुक्त स्त्री की (प्र, ईळे) विशेष इच्छा करता हूँ ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे रात्रि और दिन मिले हुए वर्ताव करके सम्पूर्ण व्यवहार में कारण होते हैं, वैसे हम दोनों विशेष करके हित चाहते हुए मित्र के सदृश वर्तमान स्त्री और पुरुष उत्तम गृह और बहुत सुख की सदा उन्नति करें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषये गार्हस्थ्यकर्माह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथोभे अहनी उषासानक्ता अदब्धे करतां तथा नो निपातोऽहमर्कैरदितिं पस्त्यां सिन्धुं स्वस्ति सख्याय देवीं प्रेळे ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (पस्त्याम्) गृहम् (अदितिम्) अखण्डिताम् (सिन्धुम्) नदीम् (अर्कैः) मन्त्रैः (स्वस्तिम्) सुखम् (ईळे) अध्यन्विच्छामि (सख्याय) मित्रभावाय (देवीम्) कमनीयां विदुषीं स्त्रियम् (उभे) (यथा) (नः) अस्माकम् (अहनी) रात्रिदिने (निपातः) यो नितरां पाति (उषासानक्ता) रात्रिदिवसौ (करताम्) (अदब्धे) अहिंसिते ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा रात्रिदिने सम्बद्धे वर्त्तित्वा सर्वव्यवहारसिद्धे निमित्ते भवतस्तथाऽऽवां विहितौ सखिवद्वर्त्तमानौ स्त्रीपुरुषौ श्रेष्ठं गृहं पुष्कलं सुखं सर्वदोन्नयेय ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे रात्र व दिवस व्यवहाराचे कारण असतात तसे आम्ही दोघे स्त्री व पुरुष हितकारक मित्राप्रमाणे उत्तम गृह व सुख सदैव वाढवू. ॥ ३ ॥